गणगौर पर्व
प्राचीन समय में एक वन में भगवान शिव, माता पार्वती और उनके गण भ्रमण कर रहे थे। यात्रा के दौरान माता पार्वती को प्यास लगी, तब भगवान शिव ने पास के एक गाँव में रुकने का निर्णय लिया। उस गाँव में गणगौर पर्व का उत्सव मनाया जा रहा था, और गाँव की महिलाएँ माता पार्वती और भगवान शिव का स्वागत करने के लिए एकत्रित हो गईं। पहले राजघराने की स्त्रियों ने माता पार्वती की पूजा की और उन्हें विभिन्न प्रकार के पकवान, वस्त्र और आभूषण अर्पित किए। माता पार्वती ने प्रसन्न होकर उन्हें अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि का वरदान दिया। इसके बाद, गाँव की सामान्य स्त्रियों और गरीब महिलाओं ने भी अपनी श्रद्धा से माता की पूजा की और अपनी सामर्थ्य के अनुसार जल और सूखे चने अर्पित किए। माता पार्वती ने उनकी सच्ची भक्ति देखकर प्रेमपूर्वक प्रसाद ग्रहण किया और उन्हें भी अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया।
जब भगवान शिव ने माता पार्वती से पूछा कि आपने राजघराने की स्त्रियों के पकवानों के साथ-साथ गरीब महिलाओं के सूखे चने भी स्वीकार कर लिए, तो माता ने उत्तर दिया, “भक्ति में धन-संपत्ति का नहीं, बल्कि श्रद्धा और सच्चे भाव का महत्व होता है।” तभी से यह परंपरा बनी कि गणगौर पूजन में माता पार्वती को प्रेम और श्रद्धा से सुहागिनें पूजती हैं और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं।
यह पर्व मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में विशेष श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।