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श्राद्ध संस्कार हिन्दू धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति और उद्धार के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। श्राद्ध मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:

1. नित्य श्राद्ध: यह वह श्राद्ध है जो नियमित रूप से प्रतिदिन किया जाता है। इसे दैनिक श्राद्ध भी कहा जाता है और इसमें पितरों के लिए तर्पण, जल अर्पण और पिंडदान शामिल होता है। यह श्राद्ध सामान्यतः ब्राह्मणों के द्वारा किया जाता है।

2. नैमित्तिक श्राद्ध: यह विशेष अवसरों पर किया जाने वाला श्राद्ध है। उदाहरण के लिए, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, एकादशी आदि विशेष तिथियों पर या किसी विशेष कारण से (जैसे मृत्यु की तिथि) किया जाता है।

3. काम्य श्राद्ध: यह श्राद्ध किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है। जैसे पुत्र प्राप्ति, स्वास्थ्य, धन-धान्य में वृद्धि आदि के लिए। इसे विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

इनके अलावा, पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो आमतौर पर भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है। इस दौरान लोग अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध करते हैं।

12 श्राद्ध (बारह श्राद्ध) हिन्दू धर्म में पितरों को तर्पण और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए किए जाने वाले महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। ये श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान किये जाते हैं, जो भाद्रपद महीने की पूर्णिमा (जिसे पितृ पक्ष की प्रारंभिक तिथि माना जाता है) से लेकर अश्विन महीने की अमावस्या (महालय अमावस्या) तक चलता है।

पितृ पक्ष के दौरान पितरों के निमित्त 12 दिन तक श्राद्ध किए जाते हैं। हर दिन का श्राद्ध एक विशेष प्रकार के पितर के लिए होता है। यह मान्यता है कि इन 12 दिनों में पितर पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध और तर्पण को ग्रहण करते हैं।

12 श्राद्ध के दिन और उनके महत्व:

1. प्रतिपदा श्राद्ध: इस दिन का श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि को हुई हो।

2. द्वितीया श्राद्ध: यह श्राद्ध उन पितरों के लिए होता है जिनकी मृत्यु द्वितीया तिथि को हुई हो।

3. तृतीया श्राद्ध: जिनकी मृत्यु तृतीया तिथि को हुई हो, उनके निमित्त श्राद्ध इस दिन किया जाता है।

4. चतुर्थी श्राद्ध: इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि को हुई हो।

5. पंचमी श्राद्ध: पंचमी श्राद्ध खासकर उन महिलाओं के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु वैधव्य जीवन में हुई हो।

6. षष्ठी श्राद्ध: जिन पितरों की मृत्यु षष्ठी तिथि को हुई हो, उनके लिए यह श्राद्ध किया जाता है।

7. सप्तमी श्राद्ध: सप्तमी तिथि को मरे हुए पितरों के लिए यह श्राद्ध किया जाता है।

8. अष्टमी श्राद्ध: इस दिन का श्राद्ध उन पितरों के लिए होता है जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि को हुई हो।

9. नवमी श्राद्ध: यह दिन खासकर उन स्त्रियों के लिए समर्पित होता है जिनकी मृत्यु वैधव्य अवस्था में हुई हो।

10. दशमी श्राद्ध: इस दिन दशमी तिथि को मरे हुए पितरों का श्राद्ध किया जाता है।

11. एकादशी श्राद्ध: जिन पितरों की मृत्यु एकादशी तिथि को हुई हो, उनके लिए श्राद्ध किया जाता है।

12. द्वादशी श्राद्ध: द्वादशी तिथि को जिन पितरों का निधन हुआ हो, उनके लिए इस दिन श्राद्ध किया जाता है।

इनके अलावा, त्रयोदशीचतुर्दशी और महालय अमावस्या को भी महत्वपूर्ण श्राद्ध के रूप में माना जाता है। महालय अमावस्या के दिन समस्त पितरों के लिए श्राद्ध करने की विशेष मान्यता होती है, जो “सर्व पितृ श्राद्ध” कहलाता है।

महालय अमावस्या (सर्व पितृ श्राद्ध): इस दिन जिन पितरों का श्राद्ध किसी कारणवश नहीं किया जा सका हो, उनके लिए श्राद्ध किया जाता है। इस दिन को पितृपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

श्राद्ध पक्ष की सेवाओं के लिए संपर्क करें:

1. ब्राम्हण भोजन

2. तर्पण, विधिवत पूजन 

3. पिंडदान, विधिवत पूजन

4. पितृ शांति – चतुर्दशी, अमावस्या, श्राद्ध पक्ष 

अन्य सेवाएं:

1. घर बैठे भोग प्रसाद चढ़ाएं एवं प्राप्त करें अपने पते पर

2. खाटूश्याम, वृन्दावन, उज्जैन, ओम्कारेश्वर, नलखेड़ा – प्रसाद सेवा 

3. मंगल शांति एवं भात पूजन – उज्जैन महाकालेश्वर

4. कालसर्प दोष निवारण – उज्जैन महाकालेश्वर

5. ऋणमुक्ति पूजा – उज्जैन महाकालेश्वर

6. पितृ शांति – उज्जैन महाकालेश्वर

7. अन्य पूजा – उज्जैन महाकालेश्वर

8. जल अभिषेक – उज्जैन महाकालेश्वर, ओम्कारेश्वर

9. रूद्र अभिषेक – उज्जैन महाकालेश्वर, ओम्कारेश्वर

10. पंचामृत अभिषेक – उज्जैन महाकालेश्वर, ओम्कारेश्वर

11. महामृत्युंजय जाप सवा लाख – उज्जैन महाकालेश्वर, ओम्कारेश्वर

12. तंत्र विद्या – नलखेड़ा बगुलामुखी माता जी  

13. कोर्ट केस – नलखेड़ा बगुलामुखी माता जी 

14. जमीन एवं संपत्ति केस – नलखेड़ा बगुलामुखी माता जी

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