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माँ कालरात्रि दुर्गा माँ के सातवें स्वरूप में पूजी जाती हैं। उनकी कथा के अनुसार, एक समय दानव रक्तबीज ने देवताओं को हराकर त्रिलोक में हाहाकार मचा दिया। उसका वरदान था कि उसके रक्त की हर बूंद से नया रक्तबीज जन्म लेता था। इससे देवता बहुत परेशान हो गए और उन्होंने माँ दुर्गा से सहायता की प्रार्थना की। माँ दुर्गा ने अपना रौद्र रूप धारण कर माँ कालरात्रि का अवतार लिया। उनका रूप अत्यंत भयंकर था—काले रंग की, खुले बाल, तीन आँखें और हाथों में तलवार व अन्य अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए। जब भी रक्तबीज का रक्त धरती पर गिरता, माँ कालरात्रि उसे अपने जिह्वा से चाट लेतीं, जिससे उसकी रक्त की बूंदें धरती पर नहीं गिर पातीं और कोई नया रक्तबीज उत्पन्न नहीं हो पाता। माँ कालरात्रि ने अंततः रक्तबीज का संहार कर देवताओं को मुक्ति दिलाई। उनकी इस शक्ति के कारण उन्हें “काल” (समय) और “रात्रि” (अंधकार) की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।

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