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परिचय: घटस्थापना का धार्मिक महत्व

नवरात्रि का पर्व देवी दुर्गा की आराधना का विशेष समय होता है, और इस दौरान की जाने वाली घटस्थापना (या कलश स्थापना) का विशेष धार्मिक महत्व है। घटस्थापना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है, और इसे देवी के आह्वान का प्रतीक माना जाता है। इसमें कलश को देवी के निवास स्थान के रूप में स्थापित किया जाता है, जो देवी के नौ दिनों के वास का प्रतीक होता है।

घटस्थापना में मिट्टी के एक पात्र में जल भरा जाता है और उसके ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखकर उसे सुसज्जित किया जाता है। यह कलश देवी दुर्गा की शक्ति और उनके नौ रूपों का प्रतीक होता है। घटस्थापना के माध्यम से हम देवी को अपने घर में आमंत्रित करते हैं और उनकी कृपा की कामना करते हैं। इसे शुभारंभ मानते हुए, नवरात्रि के सभी अनुष्ठान और पूजा इसी दिन से शुरू होते हैं।

विधि: कलश स्थापना की सही प्रक्रिया

कलश स्थापना की प्रक्रिया को विधिपूर्वक करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि देवी का आह्वान सही ढंग से हो सके। यहां घटस्थापना की विधि को सरल और विस्तृत रूप में समझा गया है:

  1. पूजन स्थल की शुद्धि: सबसे पहले जिस स्थान पर कलश स्थापना करनी है, उस स्थल की शुद्धि की जाती है। इस स्थल को स्वच्छ और पवित्र किया जाता है। मिट्टी के आँगन या चौकी पर सफेद या लाल वस्त्र बिछाकर वहाँ देवी की स्थापना के लिए स्थान तैयार किया जाता है।
  2. मिट्टी का पात्र तैयार करना: घटस्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में साफ मिट्टी भरकर उसमें सात प्रकार के अनाज, जैसे गेहूं, जौ, या मूंग की बीज डाले जाते हैं। यह अनाज उर्वरता और जीवन की वृद्धि का प्रतीक होते हैं।
  3. कलश की स्थापना: एक तांबे या पीतल के कलश में गंगाजल या शुद्ध पानी भरा जाता है। इसके बाद उसमें चावल, सुपारी, और कुछ सिक्के डाले जाते हैं। कलश के मुख पर आम के पत्ते (अशोक के पत्ते भी उपयोग में लिए जा सकते हैं) लगाकर इसे नारियल से ढका जाता है। नारियल को लाल या पीले वस्त्र में लपेटकर कलश पर रखा जाता है, जिसे रक्षा सूत्र (मौली) से बांधा जाता है।
  4. देवी का आह्वान: कलश को पूजा स्थल पर स्थापित करने के बाद देवी का आह्वान किया जाता है। इसे ‘आवाहित कलश’ कहा जाता है, जिसमें देवी को अपने घर में निमंत्रण दिया जाता है। देवी के चरणों में दीपक जलाकर पूजा प्रारंभ की जाती है।
  5. अक्षत और कुमकुम का प्रयोग: कलश के चारों ओर अक्षत (चावल) और कुमकुम का छिड़काव किया जाता है, जो पवित्रता और सौभाग्य का प्रतीक होता है। इसके बाद देवी दुर्गा के मंत्रों का जाप किया जाता है और उन्हें पुष्प, धूप और नैवेद्य अर्पित किया जाता है।

शुभ मुहूर्त: घटस्थापना के लिए उचित समय और ज्योतिषीय दृष्टिकोण

घटस्थापना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है और इसे सही मुहूर्त में करना आवश्यक होता है, ताकि पूजा का शुभ प्रभाव प्राप्त हो सके। घटस्थापना का समय पंचांग (हिंदू कैलेंडर) के अनुसार तय किया जाता है, जो विशेष रूप से नवरात्रि के पहले दिन होता है।

  1. प्रातः काल का समय: घटस्थापना प्रातःकाल के समय, जब सूर्योदय हो, तब करना शुभ माना जाता है। विशेषकर प्रतिपदा तिथि के समय घटस्थापना करना उचित माना जाता है।
  2. अभिजीत मुहूर्त: अगर प्रातःकाल में घटस्थापना संभव न हो, तो अभिजीत मुहूर्त का भी चयन किया जा सकता है, जो दिन के मध्य में शुभ समय के रूप में माना जाता है।
  3. ज्योतिषीय दृष्टिकोण: ज्योतिषीय रूप से घटस्थापना के समय ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति का विशेष महत्व होता है। घटस्थापना के लिए चुने गए समय में कोई अशुभ योग, राहु काल, या दोष नहीं होना चाहिए। शुभ मुहूर्त में किया गया घटस्थापना देवी की कृपा प्राप्ति में सहायक होता है।

पूजन सामग्री: कलश स्थापना में उपयोगी सामग्री और उनकी धार्मिक मान्यता

घटस्थापना के दौरान उपयोग की जाने वाली पूजन सामग्री का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। यह सामग्री देवी के प्रतीकात्मक रूप को स्थापित करने और उनके आह्वान के लिए उपयोगी होती है।

  1. कलश: तांबे या पीतल का कलश, जो समृद्धि और देवी की उपस्थिति का प्रतीक होता है।
  2. नारियल: देवी लक्ष्मी और देवी दुर्गा का प्रतीक माना जाता है, और इसे कलश पर स्थापित किया जाता है।
  3. आम के पत्ते: यह पत्ते जीवन की उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक होते हैं, जिन्हें कलश के मुख पर लगाया जाता है।
  4. मिट्टी और बीज: घटस्थापना के समय मिट्टी में सात प्रकार के अनाज के बीज बोए जाते हैं, जो जीवन की वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक होते हैं।
  5. कुमकुम और अक्षत: कुमकुम (रोली) और अक्षत (चावल) पवित्रता, सौभाग्य और देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माने जाते हैं।
  6. धूप और दीप: धूप और दीपक का प्रयोग पूजा के दौरान किया जाता है, जो शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है।
  7. पानी और गंगाजल: कलश में भरा गया पानी शुद्धता का प्रतीक होता है, और गंगाजल से कलश को शुद्ध किया जाता है।

निष्कर्ष: सही विधि से घटस्थापना करने के लाभ

घटस्थापना, देवी दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसका धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। सही विधि और शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करने से व्यक्ति को देवी की कृपा प्राप्त होती है। घटस्थापना के माध्यम से देवी का आह्वान कर हम उनके नौ रूपों का पूजन करते हैं, जो शक्ति, समृद्धि, और सौभाग्य का प्रतीक हैं।

नवरात्रि में घटस्थापना न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और साधना का भी प्रतीक है। सही विधि से की गई घटस्थापना से व्यक्ति को मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा, और देवी दुर्गा की अनुकम्पा प्राप्त होती है, जो उसके जीवन को शुभता और समृद्धि से भर देती है।

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